सादर चरण स्पर्श
आज घर पर एक मित्र आए . उनके छोटे से बच्चे ने बहुत शालीनता से झुक कर पैर छुए. सच जानिए बहुत अच्छा लगा. बच्चों में इस तरह के संस्कार जरुर देने चाहिए. पुराने ऐतिहासिक धारावाहिकों में भी अक्सर ये देखने को मिल जाता है. कुछ लोग पाव छूने पर आशीर्वाद देते हैं और पीठ थपथपाते हैं तो कुछ रोक लेते हैं कि अरे नही नही … हम इतने बडे अभी नही हुए हैं.. वैसे मेरी एक जानकार थी वो पैर छूने पर बस मुहं से ही बोलती थी खुश रहो पर सिर पर हाथ नही रखती थी … बाद मे महसूस किया कि वो कभी भी किसी को सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद नही देती थी पर दूर से ही खुश रहो बोल देती थी. वैसे पहले समय की अगर बात करें तो कई लोग जब अपने से बडे को पत्र लिखते थे तो वो शुरुआत ही सादर चरण स्पर्श से करते थे.
हिंदू परंपराओं में से एक परंपरा है सभी उम्र में बड़े लोगों के पैर छुए जाते हैं। इसे बड़े लोगों का सम्मान करना समझा जाता है. उम्र में बड़े लोगों के पैर छूने की परंपरा काफी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इससे आदर-सम्मान और प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं। साथ ही रिश्तों में प्रेम और विश्वास भी बढ़ता है। पैर छूने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों ही मौजूद हैं।
जब भी कोई आपके पैर छुए तो सामान्यत: आशीर्वाद और शुभकामनाएं तो देना ही चाहिए, साथ भगवान का नाम भी लेना चाहिए। जब भी कोई आपके पैर छूता है तो इससे आपको दोष भी लगता है। इस दोष से मुक्ति के लिए भगवान
का नाम लेना चाहिए। भगवान का नाम लेने से पैर छूने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं और आपके पुण्यों में बढ़ोतरी होती है।
आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं समाप्त होती है, उम्र भी बढ़ती है।
किसी बड़े के पैर क्यों छुना चाहिए:-
पैर छुना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है। यह एक विज्ञान है
जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है। पैर छूने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि अनजाने ही कई बातें हमार अंदर उतर जाती है।
पैर छूने का सबसे बड़ा फायदा शारीरिक कसरत होती है, तीन तरह
से पैर छुए जाते हैं। पहले झुककर पैर छूना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग प्रणाम। झुककर पैर छूने से
कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि में हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है, जिससे उनमें होने वाले
स्ट्रेस से राहत मिलती है, तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रेस दूर होता है। इसके
अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है। प्रणाम करने का तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। किसी के पैर छूना यानी उसके
प्रति समर्पण भाव जगाना, जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म
होता है।
Rajasthan Patrika:secret of feet touching sanskar
जयपुर चरण स्पर्श व चरण वंदना को भारतीय संस्कृति में सभ्यता और सदाचार का प्रतीक माना जाता है। आत्मसमर्पण का यह भाव व्यक्ति आस्था और श्रद्धा से प्रकट करता है। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चरण स्पर्श की यह क्रिया व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से पुष्ट करती है। यही कारण है कि गुरुओं, (अपने से वरिष्ठ) ब्राह्मणों और संत पुरुषों के अंगूठे की पूजन परिपाटी प्राचीनकाल से चली आ रही है। इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए परवर्ती मंदिर मार्गी जैन धर्मावलंबियों में मूर्ति पूजा का यह विधान दक्षिण पैर के अंगूठे की पूजा से आरंभ करते हैं और वहां से चंदन लगाते हुए देव प्रतिमा के मस्तक तक पहुंचते हैं।पुराण और चरण वंदनापुराण कथाओं में गुरुजन और ब्राह्मणों की चरण रज की महिमा में कहा गया है -यत्फलं कपिलादाने, कीर्तिक्यां ज्येष्ठ पुष्करे।तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां (वराणां) पाद सेंचने।यानी जो फल कपिला नामक गाय के दान से प्राप्त होता है और जो कार्तिक व ज्येष्ठ मासों में पुष्कर स्नान, दान, पुण्य आदि से मिलता है वह पुण्य फल ब्राह्मण (वर) के पाद प्रक्षालन एवं चरण वंदन से प्राप्त होता है। हिंदू संस्कारों में विवाह के समय कन्या के माता-पिता द्वारा इसी भाव से वर का पाद प्रक्षालन किया जाता है। क्या कहता है विज्ञानकुछ विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि शरीर में स्थित प्राण वायु के पांच स्थानों में से पैर का अंगूठा भी एक स्थान है। जैसे- तत्र प्राणो नासाग्रहन्नाभिपादांगुष्ठवृति 1- नासिका का अग्रभाग 2- हृदय प्रदेश 3- नाभि स्थान 4- पांव और 5- पांव के अंगूठे में प्राण वायु रहती है।चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि पांव के अंगूठे में कक ग्रंथि की जड़ें होती हैं, जिन पर दबाव या चोट से इंसान का जीवन खतरे में पड़ सकता है।मनुष्य के पांव के अंगूठे में विद्युत संप्रेक्षणीय शक्ति होती है। यही कारण है कि वृद्धजनों के चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे अविद्या रूपी अंधकार नष्ट होता है और व्यक्ति उन्नति करता है।पढ़ना न भूलेंः- धर्म, ज्योतिष और अध्यात्म की अनमोल बातें – यहां रखा है परशुराम का फरसा, लोहार ने काटा तो हो गई मौत!
यही कारण है कि गुरुओं, (अपने से वरिष्ठ) ब्राह्मणों और संत पुरुषों के अंगूठे की पूजन परिपाटी प्राचीनकाल से चली आ रही है।
इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए परवर्ती मंदिर मार्गी जैन धर्मावलंबियों में मूर्ति पूजा का यह विधान दक्षिण पैर के अंगूठे की पूजा से आरंभ करते हैं और वहां से चंदन लगाते हुए देव प्रतिमा के मस्तक तक पहुंचते हैं। rajasthanpatrika.patrika.com
कुछ भी कहिए पर चापलूसी से दूर होकर चरण स्पर्श आदर के साथ किया जाए तो सुखकर होता है …
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