फसल बर्बाद होने की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में 100 से भी ज्यादा किसान खुदकुशी कर चुके हैं जबकि महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्र प्रदेश और देश के दूसरे हिस्सों से भी किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार मिल रही हैं।
मीडिया में किसानों की आत्महत्याओं की बातें आ रही हैं, लेकिन मीडिया को इस मुद्दे को लेकर जितना गंभीर होना चाहिए, वह शायद नहीं है। राजनेताओं की लड़ाई में किसान का जो असली मुद्दा है, वह छुप जाता है। टीवी चैनलों पर बहस में किसान नहीं, राजनेता नज़र आते हैं।
राजनेता भी किसानों को लेकर बस अपने तरीके से ‘गंभीर’ नज़र आ रहे हैं। कोई रैली के जरिये किसानों का मुद्दा उठाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई मुआवजे की बात कर रहा है। प्रधानमंत्री जी ‘मन की बात’ से लेकर राजनीति के मंच तक किसान की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए मुआवज़ा भी बढ़ा दिया है, जो अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह मुआवजा किसानों तक पहुंच पाता है। अगर पहुंचता है, तो कितना ??? पिछले ही दिनों ऐसी खबरें आईं कि उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़ों में किसानों को मुआवजे के रूप में 50 से लेकर 200 रुपये तक के चेक दिए जा रहे हैं। सोचने की बात है कि ये मुआवजा है या किसानों के साथ मजाक। अगर ऐसा ही हाल रहा, तो चाहे कितना भी मुआवज़ा बढ़ा दिया जाए, किसानों का हाल कभी सुधरने वाला नहीं है.. और भविष्य मे कुछ ऐसी खबर भी देखने सुनने को मिल सकती है .
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